श्रीमती सरोजनी नायडू
भूतपूर्व स्वतंत्रता सेनानी, पंडित शिव नारायण शर्मा (1890-1976) द्वारा रचित कविताओं का संकलन।
श्रीमती सरोजनी नायडू
निरस जन-जीवन हुआ था, निरस जल-थलचर हमारा।
निरस जड़-चेतन बना था, निरस वन-उपवन हमारा।।
बंध रहे थे बंधनों में, मार मन को मरे जीते।
सह रहे थे संकटों को, जानवर से गये बीते।।
निरस को फिर सरस करने, रस लिये रसखान आई।
मलिन थे मुख मानवों के, जब मिली मुसकान आई।।
आदि-शक्ति अभूत आई, वाक-शक्ति विभूति पाई।
मातृ-भक्ति अपूर्व लाई, राज-शक्ति विरवित छाई।।
वट विटप सब लहलहाये, गूँज गुंजन दी सुनाई।
सुमन खिल-खिल खिलखिलाये, कूक कोयल कान आई ।।
देश भर में धूम छाई, दूर करे क्लेश आई।
वरद वाणी विरद लाई, नारि नर ने दी बधाई।।
मुक्त करने बंधनों से, बंधनों में आप भाई।
काटने को बेड़यों के, पहिन बेड़ी ली कलाई ।।
जान जन को समझ आई, मान मन को सनक छाई।
कठिन रहना अब यहाँ है, कान उनके भनक आई।।