कृषक
भूतपूर्व स्वतंत्रता सेनानी, पंडित शिव नारायण शर्मा (1890-1976) द्वारा रचित कविताओं का संकलन।
कृषक
बड़े भोर घर से जाता है, बड़ी रात घर आता है।
कृषि में लगा रात दिन रहता, कृषक चैन नहीं पाता है।।
मोट झोटा वस्त्र न फिर भी, पूरा तन ढक पाता है।
रूखा सूखा चना चबैना, बैठ खेत में खाता है।।
जीवन में जो जन सुख पाता, कभी नहीं उसने पाया।
सर्दी, गर्मी वर्षा ऋतु में, मिली न छत छतरी छाया।।
जोता बोया फिर भी चिन्ता, हरा भरा वह क्यों कर हो।
कभी वह देखता है नीचे को, कभी देखता ऊपर को।।
देव क्या वीनन पर करना, मन ही मन कहता रहता।
कभी कलेजा उछलन लगता, कभी दुखी धड़कन लगता।।
कभी धीर खोकर कहता है, हाय राम क्यों कृषक बना।
सबको तो सुख में सुनता हूँ, मैं पुतवा हूँ कृषक बना।।
कठिन समय में कर्महीन ने, जो कुछ करी कमाई है।
चढ़ि गई वह घर औरों के, उसके पास न आई है।।
पर उपकारों के बदले में, यही रहा मिलना उसके।
दें यदि न्याय साधें हम इसको।।