महात्मा मोहनदास कर्मचन्द गाँधी
भूतपूर्व स्वतंत्रता सेनानी, पंडित शिव नारायण शर्मा (1890-1976) द्वारा रचित कविताओं का संकलन।
महात्मा मोहनदास कर्मचन्द गाँधी
आज हमारी अवनि और है। आज हमारा आर चमन।
आज हमारी पवन और है, आज हमारा और वतन।।
सरबस खोया हमने अपना, भाषा, भूषा, भेष भवन।
ऐसा सोया भाग्य हमारा, रोया जिसको देख गगन।।
क्या हम जाते पास किसी के, क्या मुख अपना दिखलाते।
कौन हमारी जन्मभूमि है, यह कहते हम शरमाते।।
पराधीनता हमको दीनी, धन-दौलत ले दीन किया।
अँगरेजों ने अँगरेजी दे, सब कुछ हमसे छीन लिया।।
कौन कहाँ से क्या ले आया, क्या दे हमको जिला लिया।
बंदर-घुड़की देख डर रहे, मरना उनको सिखा दिया।।
माँ का प्यारा मोहन आया, उसने हमको मंत्र दिया।
असहयोग का पाठ पढ़ाया, शक्ति-हीन को सबल किया।।
कष्ट सहन को पुण्य बताया, स्वयं आपने कष्ट सहा।
बंदीग्रह को तीर्थ बनाया, बंदी-जन को कृष्ण कहा।।
सतत सहारा लिया सत्य का, सत्य बात पर अड़ा किया।
स्वतन्त्रता के युद्ध क्षेत्र में, सत्याग्रह कर लड़ा किया।।
बंधन में रह बंधन काटे, प्रतिबंधों से डरा नहीं।
स्वत्वों के हित अनशन करके, हार न मानी कभी कहीं।।
कृश तन, जर्जर मोटा खद्दर, तिस पर ढका न पूरा अंग।
निर्धन निर्बल केवल तप बल, सबल देख कर होते तंग।।
सत्ताधारी सन्न रह गये, सब के सब ही सनकाये।
रात-रात को स्वप्न देखते, दिन-दिन दिल में दहलाये।।
बाहर से तो शेर बने थे, अंदर रहते भय खाये।
बीबी बच्चे भेजे घर को, दिन गिनते थे घबराये।।
शस्त्र न कोई अस्त्र न कोई, डंडे से ही डरा दिया।
भागो भागो कह करके ही, अँगरेजों का भगा दिया।।
राष्ट्र-पिता का आभारी है, राष्ट्र हमारा जन जन से।
सृष्टि-पिता की कृपा दृष्टि है, इस पर रही सनातन से।।