विश्वासघात
भूतपूर्व स्वतंत्रता सेनानी, पंडित शिव नारायण शर्मा (1890-1976) द्वारा रचित कविताओं का संकलन।
विश्वासघात
हम किसको मित्र कहें अपना, किस की अब माने बात कहो।
कल जिसको समझ रहे अपना, बन गया बिगाना आज वही।।
मित्रों को ठीक परस करना, सीधे सच्चे का काम नहीं।
बातों के मित्र सहज बनना, सौ में सहजे हैं एक कहीं।।
इन बड़े बड़ों को मत पूछो, अपनी ही बड़ी बात रखते ।
छोटे छोटों को लड़ा लड़ा. शतरंजी चला चाल करते।
रह रहे साथ में तुम जिनके, उनके संग ही अन्याय किया।
चिढ़ गये न जाने क्यों हम से, स्वाधीन हुये क्या पाप किया।।
बन बन कर आये व्यापारी, दर दर फिर फिर व्यापार किया।
घर घर चल माँगी भूमि बसे, छल छल कर सब अधिकार लिया।।
जब रहे लड़ाते हमें रहे, जब गये बनाकर पाक गये।
कर गये देश को टुकड़ों में, अँगरेज लगा कर आग गये।।
कह गये बुलबुला पानी का, भारत की होगी आजादी।
जो लगा रहे हैं आस बड़ी, उन सबकी होगी बरबादी।।
वे सुख की नींद न सोवेंगे, आपस में लड़ लड़ावें ये।
जो हमको आज भगाते हैं, कल वे ही हमें बुलावेंगे।।
कर चले विभाजन हम इसका, आजन्म न अब यह पनपेगा।
जब लगी आग यह भड़केगी, क्या शांत इसे यह कर लेगा।।
भारत ही नहीं एशिया भी, इसकी लपटों में आवेगा।
पश्चिम तब इसे बुझाने को, निज नीति काम में लावेगा।।
अड़ अड़ कर जिसको बनवाया, लड़ लड़ कर उसे बढ़ाना था।
रह रह कर जिसको वचन दिया, पग पग पर उसे निभाना था।।
भारत में बदला लेने को, इन को तो पाक लड़ाना था।
शेरों की मरी खाल पहना, गीदड़ को शेर बनाना था।।
राष्ट्रों का कैसा संघ बना, निष्पक्ष बातें जो करता।
जो चाहे आके कुछ बक दे, कोई न किसी को कुछ कहता।।
यह बड़े बड़ों का नाटक है, छोटे मोटे को ठगने का।
शास्त्रों को झूठा करने का, झूठी बातों को गढ़ने का।।
वर्षों से रहे साथ जिनके, उस के संग यह बरताव किया।
भरने का नहीं कभी भी है, इस ने दिल पर वह घाव किया।।
सभ्यों की यही सभ्यता है, अनुभव ने हम को बता दिया।
पहले तो बने मित्र अपने, फिर मिले शत्रु से दगा किया।।