चौथा दृश्य
( पात्र- राम और सीता )
भूतपूर्व स्वतंत्रता सेनानी, पंडित शिव नारायण शर्मा (1890-1976) द्वारा रचित कविताओं का संकलन।
चौथा दृश्य
( पात्र- राम और सीता )
राम- यह बताने तुम्हें आया, प्रिये मैं बन जा रहा।
तात का आदेश मुझको, वह अवसि करना रहा।।
सास की सेवा ससुर की, करो तुम रहके यहाँ।
वर्ष चौदह को बिता मैं, शीघ्र लौटूँगा यहाँ।।
सीता- स्वामि मैं अर्धाङ्गिनी हूँ, साथ ही हूँ किंकरी।
सहचरी यदि न बनाओ, नाथ फिर भी अनुचरी।।
आप की दासी बनी मैं, रात दिन सेवा करूँ।
बन चलन की थकन सारी, पग दबा करके हरूँ।।
राम- गात कोमल, धूप तपती, रह सकोगी तुम वहाँ?
कंकरों में पत्थरों में, चल सकोगी तुम कहाँ?
शरद ऋतु की ग्रीष्म ऋतु की और वर्षा काल की।
झेलनी तुमको पड़ेगी, विपत्ति यह हर साल की।।
सीता- नाथ मानो सत्य कहती, छोड़ जाओगे मुझे।
लौट कर जीती अवध में, तो न पाओगे मुझे।।
राम- यदि यही है चलो तो फिर, करें माँ से प्रार्थना।
मोह ममता त्याग अनुमति, दें करें यह याचना।।