लो0 बाल गंगाधर तिलक
भूतपूर्व स्वतंत्रता सेनानी, पंडित शिव नारायण शर्मा (1890-1976) द्वारा रचित कविताओं का संकलन।
लो0 बाल गंगाधर तिलक
जब अँगरेजी राज का, छाया यहाँ प्रताप था।
जब स्वराज का नाम ही, लेना भारी पाप था।।
जब समस्त संसार में, जन-मत का दावा बड़ा।
पराधीन इस देश के, मुख पर था ताला पड़ा।।
सघन अँधेरा छा रहा, नहीं उजाला झलकता।
काल-भाल पर तब रहा, तिलक अकेला दमकता ।।
तप्त हृदय संतप्त थे, प्राण त्राण शंका रही।
गंगाधर मुख कमल से, मातृ-भक्ति गंगा बही।।
सुन-सुन गर्जन घोषणा, राज-शक्ति का दिल हिला।
जन मन सुमन समूह जो, मुरझाया था फिर खिला।।
मानव की स्वाधीनता, जन्म-सिद्ध अधिकार है।
परवशता परतन्त्रता, कायर मन की हार है।।
गरज-गरज कर जब कहा, मद मदांध हो रे करी।
रहना दुर्लभ अब यहाँ, जब जागा है केहरी।।
काला सागर चुप रहा, उग्र हुआ झल्ला गया।
शासन का आसन हिला, लंदन भी थर्रा गया।।
क्रांति हुई सर्वत्र थी, राज्य-कांति बढ़ने लगी।
शांति गई अभिशाप दे, दमन नीति चलने लगी।।
दोषी मैं यद्यपि बना, जूरी का यह वचन है।
निर्दोषी पर कह रहा, मेरा अन्त:करण है।।
चलकर पथ-कटक नहीं, मुख संकट से मोड़ना।
पड़-पड़ बंधन में मुझे, बंधन माँ के तोड़ना।।
बंदी तो कर ही दिया, देश निकाला भी किया।
पत्नी ने पतिदेव से, विदा मांग तन दे दिया।।
स्वर्ग सिधारी जब प्रिया, तार मिला पढ़ रख दिया।
वयस्त काम में फिर हुए, जेलर ने अचरज किया।।
‘दीन-दशा पर देश की’, कहा ‘सभी आँसू बहे’।
पत्नी के इस शोक में, नहीं बहाने को रहे।।
बच्चा-बच्चा कह उठा, ‘धन्य तिलक’ अति जोश से।
चप्पा-चप्पा भूमि का, गूँज उठा जय घोष से।।
स्वर ऊँचा कर कह रहे, भारत हुआ स्वतंत्र है।
राज-तिलक कर तिलक का, निश्चय गया कुतंत्र है।।