सातवाँ दृश्य
( पात्र- सुमंत्र और राम )
भूतपूर्व स्वतंत्रता सेनानी, पंडित शिव नारायण शर्मा (1890-1976) द्वारा रचित कविताओं का संकलन।
सातवाँ दृश्य
( पात्र- सुमंत्र और राम )
सुमन्त्र- राम मैं आश्चर्य में हूँ, समझ में आता नहीं।
बना बिगड़ा काम कैसे, ग्रह रहे खोटे कहीं।।
शोक में नृप छटपटाते, चेत आता है जभी।
राम प्यारे, राम प्यारे, रट लगाते हैं यही।।
देख कर नृप की दशा को चित्त होता है दु:खी।
क्या न कोई यत्न जिससे, कर सकें उनको सुखी।।
नगर नर सब कह रहे हैं, राम गद्दी पायेंगे।
राम यदि वन को गये तो, साथ हम भी जायेंगे।।
राम तुमसे प्रेम सबको, देश भर है मानता।
भरत का अभिषेक होवे, यह न कोई चाहता।।
राम- भरत में मुझमें सचिव है भेद कुछ भी तो नहीं।
सत्य कहता आपसे, जानती जनता नहीं।।
भरत भइया जब करेंगे, राज सब सुख पायेंगे।
देखना थोड़े दिनों में, भूल मुझको जायेंगे।।
सचिव सोचो तो उसे भी, जो कि इसमें मर्म है।
मानना आज्ञा पिता की, क्या न सुत का धर्म है।।
सुमन्त्र- विषम है ऐसी समस्या, राम क्या तुमसे कहूँ।
कुछ नहीं कह पा रहा हूँ, रूदन कर मन में रहूँ।।
यदि यही निश्चय तुम्हारा, कहा नृप ने वह करूँ।
राज-रथ में बिठा करके, तुम्हें बन को ले चलूँ।।
राम- प्रथम छूकर पैर गुरू के, वन्दना सबसे करूँ।
मातु पितु परिवार सबसे, हो विदा अब मैं चलूँ।।
स्वजन परिजन वृद्ध बालक, कष्ट अब न उठाइये।
जोड़ कर मैं हाथ कहता, लौट कर घर जाइये।।