आठवाँ दृश्य
( पात्र- सुमन्त्र, कैकेयी, भरत, शत्रुघ्न, दशरथ, वशिष्ठ और दूत )
भूतपूर्व स्वतंत्रता सेनानी, पंडित शिव नारायण शर्मा (1890-1976) द्वारा रचित कविताओं का संकलन।
आठवाँ दृश्य
( पात्र- सुमन्त्र, कैकेयी, भरत, शत्रुघ्न, दशरथ, वशिष्ठ और दूत )
सुमन्त्र- नाथ हम कुछ कर न पाये, सभी रोकर रह गये।
राम लक्ष्मण संग सीता, छोड़ हमको बन गये।।
दशरथ- राम मेरे, राम मेरे, छोड़ कर मुझको गये।
प्राण प्यारे अब गये तो, प्राण मेरे भी गये।।
सुमन्त्र- हाय स्वामी, हाय स्वामी, छोड़ तुम भी चल दिये।
कर गये सूनी अयोध्या, देव दु:ख पर दु:ख दिये।।
कौशल्या- गये ऐसे समय स्वामी, जब यहाँ कोई नहीं।
क्रिया करने के लिए हा! पुत्र चारो ही नहीं।
वशिष्ठ- धैर्य रक्खो भाग्य में जो, लिखा हो करके रहे।
दूत भेजो जो भरत को, शीघ्र लाये बिन कहे।।
दूत- गुरु वशिष्ठ बुला रहे हैं, अवध को चलिये अभी।
राज-रथ है साथ भेजा, बैठिये इसमें अभी।।
भरत- कुशल तो है बात क्या है, दूत बोलो तो सही।
दूत- आपसे मैं सत्य कहता, कुछ कहा मुझसे नहीं।।
भरत- बन्धु देखो वह अयोध्या, सामने दिखला रही।
उच्च जिसके भवन फिर भी, है उदासी छा रही।।
सारथी गति तीव्र कर दो, शीघ्र पहुँचाओ मुझे।
बात क्या गुरु ने बुलाया, सोच इसका है मुझे।।
शत्रुघ्न- नगर में हम आ गये हैं, किन्तु नहिं वह बात है।
चहल-पहल कहीं नहीं है, न कहीं उल्लास है।।
भरत- सचिव यह सुनसान कैसा, क्या भयानक बात है।
जीर्ण तन क्यों है तुम्हारा, स्वस्थ घर में तात है?
सचिव- भरत कहते दु:ख होता, क्या बताऊँ मैं तुम्हें।
राज भोगो जो मिला है, जिस तरह से भी तुम्हें।।
भरत- तात कैसे हैं बताओ, क्या नहीं वे स्वस्थ हैं?
सुमन्त्र- देव की गति क्या कहूँ, मैं स्वस्थ ना अस्वस्थ हैं।।
भरत- हा! पिता चलते समय भी, मुझे बुलवाया नहीं।
मैं अभाहगा हाय! ऐसा, बात कर पाया नहीं।।
कैकेयी- पुत्र प्यारे मत दु:खी हो, धैर्य को धारण करो।
हो गया सो हो गया अब, कहा नृप ने वो करो।।
भूप जाते समय तुमको, राज सत्ता दे गये।
राज को देखो सम्हालो, करो वह जो कह गये।।
भरत- माँ हमें पहले बताओ, पूज्य भ्राता है कहाँ?
हैं कहाँ वे लखन भाई, पूज्य भाभी है कहाँ।
कैकेयी- राम सीता अनुज संग ही, गये बन में सुत वहाँ।
शान्ति वातावरण जिसका, रह रहे ऋषि मुनि जहाँ।।
शत्रुघ्न- प्रेम चारों भाइयों में, ओत-प्रोत अटूट है।
रूठ करके वहाँ जाना, झूठ निश्चय झूठ है।।
मंथरा की बात मानी, हमें ऐसा लग रहा।
दूर हो इस को भगाओ, क्रोध इस पर आ रहा।।
भरत- भेद इसमें और ही कुछ, माँ कहो सब बात को।
राज दे मुझको यहाँ पर, बन दिया है राम को।।
कैकेयी- मैं अभागिन कहूँ तुमसे, पुत्र सच सच बात को।
कहा मैंने ही नृपति से, कीजिए ये काम दो।।
भरत- हाय मैं ऐसा अभागा, कुल कलंकी क्यों किया।
तात को तो स्वर्ग भेजा, राम को बन है दिया।।
करूँ प्रायश्चित इसका, नाथ को लाऊँ यहाँ।
और बन की यातना, मैं भोगने जाऊँ वहाँ।।
चलो मेरे साथ सब ही, करें, उनसे प्रार्थना।
लौट आवें राज लेवें, करें उनसे याचना।।