पांचवाँ दृश्य
( पात्र- राम, कौशल्या, सुमित्रा और सीता )
भूतपूर्व स्वतंत्रता सेनानी, पंडित शिव नारायण शर्मा (1890-1976) द्वारा रचित कविताओं का संकलन।
पांचवाँ दृश्य
( पात्र- राम, कौशल्या, सुमित्रा और सीता )
राम- वन्दना कर जोड़ करता, मात शुभ अवसर मिला।
आज हूँ कृतकृत्य माँ मैं, राज बन का जो मिला।।
भरत भाई चतुर हैं वे, राज देखेंगे यहाँ।
और मैं वनवासियों की, ज करूँ सेवा वहाँ।।
कौशल्या- आज शुभ अवसर मिला, तब तुम डराते हो मुझे।
राम ऐसी बात कह कर, क्यों चिढ़ाते हो मुझे।।
भरत ले अधिकार तेरा, यह कभी सम्भव नहीं।
भूप भी वन भेजने की, दें कभी अनुमति नहीं।।
पुत्र लक्ष्मण तुम बताओ, बात जो कुछ हो सही।
हाय। वह हो रहा है, मैं अभागी बन रही।।
बहिन मँझली राज ले ले, भरत को दे दे भले।
भरत भी है पुत्र मेरा, मैं लगाऊँगी गले।।
जाय नृप से मैं कहूँगी, भरत राज करें सही।
किन्तु मेरे राम को भी, यहीं रहने दें कहीं।।
जन्म से ही जिसे पाला, अब अलग कैसे करूँ।
हिंस पशु रहते जहाँ हैं, वहाँ जाने को कहूँ।।
गोद में जिसको खिलाया, छोड़कर मुझको चला।
बहिन देखो तो सुमित्रा, दैव ने मुझको छला।।
सुमित्रा- क्यों हुआ यह जब किसी का, स्वत्व हम लेते नहीं।
जो मिला है जिसे जीजी, कौन देता है कहीं।।
मैं कहूँगी जाय नृप से, राम तुम चुपको रहो।
या लखन तुम ही पिता के, पास ज कर के कहो।।
लक्ष्मण- मैं करूँ जो भी कहो माँ, नाथ भी तो यह कहें।
यदि इन्हें स्वीकार हो तो, बात बिगड़ी बन रहें।।
राम- मात सुनिये धैर्य रखिये, पितु बचन सर्वोच्च है।
राज्य क्या साम्राज्य भी हो, तुच्छ से भी तुच्छ है।।
कौशल्या- चुप रहो तब बहिन मेरी, होन दो जो हो रहा।
मैं न बाधक बनूँ बेटा, करो नृप ने जो कहा।।
सीता- सास के पग लगी बोली, मात मैं हतभागिनी।
समय सेवा कर न पाई, मैं बनी बनगामिनी।।
सास ससुर सभी बड़ों की, लौट कर सेवा करूँ।
दैव की हो दया ऐसी, प्रार्थना ऐसी करूँ।।