श्री लाल बहादुर शास्त्री
भूतपूर्व स्वतंत्रता सेनानी, पंडित शिव नारायण शर्मा (1890-1976) द्वारा रचित कविताओं का संकलन।
श्री लाल बहादुर शास्त्री
रत्नों की खान भूमि अपनी, रत्नों की कमी नहीं।
शास्त्रों का ज्ञान महान जिन्हें, होते आये हैं सभी कहीं।।
जिस समय लगा था ग्रहण इसे, आवरण विदेशी छाया था।
राधाकृष्णन सा सुत मा ने, श्रद्धालु हितैषी पाया था।।
बचपन से ईश्वर भक्त रहा, श्रद्धा अटूट थी गुरुजन में।
शिक्षा पा ऊँची से ऊँची, पंडित्य दिखाया दर्शन में।।
छात्रों को दी सप्रेम शिक्षा, दर्शन सा शास्त्र निरस फीका।
मित्रों जैसा व्यवहार किया, था जिससे निरस सरस नीका।।
शिष्यों ने कहा विदेश प्रभू, जाते योग्यता बढ़ाने को।
हँस करके कहा गया जो मैं, पढ़ने को नहीं पढ़ाने को।।
जब मिले यही सबसे कहते, पश्चिम की नहीं नकल करना।
देशी खाना पीना रहना, देशी ही सदा चलन चलना।।
संस्थाओं में बँधकर न रहे, सर्वदा समय पर तथ्य कहा।
थोड़ा बोले जितना बोले, अक्षरश: होकर सत्य रहा।।
पक्षी की तरह उड़े नभ में, मछली सदृश तैरे जल में।
कहते थे किन्तु न सिखलाया, इस धरती पर रहना जग में।।
धनि धनि पावन यह धरती है, जिसने है ऐसा सुत जाया।
जो आज राष्ट्रपति है अपना, ऊँचे से ऊँचा पद पाया।।
भारत के नेता सुखी रहो, जन जन की यही कामना है।
युग-युग तक जीओ अमर रहो, ईश्वर से यही प्रार्थना है।।