श्रमजीत
भूतपूर्व स्वतंत्रता सेनानी, पंडित शिव नारायण शर्मा (1890-1976) द्वारा रचित कविताओं का संकलन।
श्रमजीत
सोता आधी रात, अंधेरे मुँह उठ जाता।
दिन भर करता काम, रात को घर पर आता।।
उसे काम से काम, नहीं बेकाम भटकता।
ऐश और आराम, न उसके पास फटकता।।
रूखा सूखा खाय, उदर अपना भरता है।
फटा पुराना पाय, बदन अपना ढकता है।।
बाहर भीतर एक, नहीं छल छिद्र करता।
जीवन में रह नेक, किसी से द्वेष न रखता।।
मई, जून का मास, सभी को जब खलता है।
हाथ न पंखा पास, तपस्वी बन करता है।
श्रवत रहत श्रमवारि, श्रमिक श्रम करता रहता।
श्रमिक प्रेम अनुराग, प्रकृति संग उसका रहता।।
कोई जाय पहाड़, वायु सेवन करता है।
कोई जा कश्मीर, तरप तन की हरता है।।
कोई जाय प्रयाग, नहीं कर पाप नसाता।
कोई स्वेद स्वबेह, बहाकर पुराय कमाता।।
संतोषी संतोष, उसी में जो कुछ पाता।
मिथ्या मिष्टाचर, नहीं उसके मन भाता।।
अनाचार अन्याय, न अधरम उसे सुहाता।
सीधा सच्चा मार्ग, सुगमतर उसे बनाता।।
आश किसी की नहीं, किसी का नहीं सहारा।
हाथ किसी के कभी, पास जा नहीं पसारा।।
जो आया सो गया, कभी मन मैल न लाया।
रुपया पैसा सदा, हाथ का मैल बताया।।
श्रम करके श्रमजीत, जयी विजयी होता है।
श्रमजीवी जग बीच, यशी सुयशी होता है।।
सृष्टि का सर्वस्व, श्रमी है सर्वोत्तम है।
पुरषों का पुरुषत्व, श्रमी है पुरुषोत्तम है।।