श्री गोपाल कृष्ण गोखले
भूतपूर्व स्वतंत्रता सेनानी, पंडित शिव नारायण शर्मा (1890-1976) द्वारा रचित कविताओं का संकलन।
श्री गोपाल कृष्ण गोखले
भारतवासी थे दीन-दुखी, खोकर धन, बल खोखले हुए।
दुख दूर उन्हीं का करने को, गोपाल कृष्ण गोखले हुए।।
संकटमय जिसका जीवन हो, खाने के लाले जिसे पड़े।
वह तर्क न्याय का पण्डित हो, यह देख चकित हैं बड़े-बड़े।।
रानाडे जैसे गुरू मिले, गांधी से शिष्य बने जिनके।
दादाभाई के अनुयायी, प्रिय मित्र फिरोज रहे उनके।।
धुन सदा काम की लगी रही, जनता के हित अति कष्ट सहे।
वे भारत-सेवक समिति बना, सेवा करते दिन-रात रहे।।
भारतवासी सब सुखी रहें, उनकी बस यही कामना थी।
जन की सेवा ईश्वर सेवा, मन की यह बनी धारणा थी।।
मुर्दों में जिनकी गिनती थी, उन सबको जाके जिला दिया।
दक्षिण अफ्रीका दौड़ गये, लंदन तक को भी हिला दिया।।
भाषण देने में चतुर बड़े, अँग्रेज उन्हीं से डरा किये।
बाहर भीतर भी कौंसिल के, अधिकारों के हित लड़ा किये।।
पूरब का ले संदेश गये, पश्चिम वालों को बता दिया।
काले गोरे में भेद नहीं, यह तर्क न्याय से जता दिया।।
प्यारी कांग्रेस रही उनको, उनकी पर नीति नरम दल की।
भड़की जब आग न बुझ पाई, निकली हिय फार गरम दल की।।
प्रतिदिन करते ही काम रहे, आराम नहीं उनने जाना।
वे चले इसी से शीघ्र गये, हो स्वस्थ उन्हें फिर था आना।।