पंडित मदनमोहन मालवीय
भूतपूर्व स्वतंत्रता सेनानी, पंडित शिव नारायण शर्मा (1890-1976) द्वारा रचित कविताओं का संकलन।
पंडित मदनमोहन मालवीय
श्वेत मुकुट अस श्वेत शीश पट, श्वेत वसन तन सुहावना।
बसत रहत मन मानव मंदिर, मूरत बन-बन महामना।।
जिस मधुवन का तू मनमोहन, पतझड़ उसमें रहा बसंत।
मुरली के तेरे सुर सुन-सुन, आया फिर से वहाँ बसंत।।
धरम करम तेरे जीवन का, एकमात्र आधार बना।
जननी जन-सेवा कर रहना, तेरा यह मत था अपना।।
भेड़ न बनकर जग में रहना, अत्याचार नहीं सहना।
देश वेश निज भाषा भूषा, इन पर गर्व सदा करना।।
सेवा-समिति बना सेवा की, सेवा करना सिखलाया।
विद्यापीठ बना विद्या से, पथ उन्नति का दिखलाया।।
नहीं मांगना जिनसे आया, उनने जा के लीनी सीख।
राजा तक ने झोली ले के, सँग-सँग तेरे मांगी भीख।।
हिन्दू हिन्दी हिन्द देश में, हर दम तेरे रहते प्रान।
मन वाणी से तथा कर्म से, प्रतिदिन तेरा इनमे ध्यान।।
दर्शन तेरा फिर-फिर करते, नयन न कभी अघाते थे।
भाषण घंटो सुनते रहते, कान न कभी थकाते थे।।
पंडित दो-दो देख डर गई, नौकरशाही घबरानी।
कर प्रयाग का त्याग बनाई, नई लखनऊ रजधानी।।
मानव का आदर्श बनाकर, मालवीय ने दिखलाया।
भारत का उत्कर्ष उच्चतम, चित्र बना के बतलाया।।