दो शब्द
भूतपूर्व स्वतंत्रता सेनानी, पंडित शिव नारायण शर्मा (1890-1976) द्वारा रचित कविताओं का संकलन।
दो शब्द
प्रस्तुत नाटक ‘राम वन गमन’ हमारे पिताश्री शिवनारायण शर्मा की अनुपम कृति है। पिताश्री मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के अनन्य भक्त थे। राम कथा अनवरत सलिल प्रवाहिनी भागीरथी के समान अनन्त काल से जनमानस का कल्याण करती आ रही है। आदिकवि वाल्मीकि से लेकर आज तक न जाने कितने कवियों ने इस कथानक को अपने-अपने ढंग से प्रस्तुत किया है।
भक्तप्रवर गोस्वामी तुलसीदास जी ने राम कथा की अनन्तता को बताते हुये कहा है-
हरि अनंत हरि कथा अनंता। कहहिं सुनहिं बहुविधि सब संता।
राचन्द्र के चरित सुहाए। कलप कोटि लगि जाहिं न गाए।
अर्थात् श्री हरि (भगवान राम) अनन्त हैं और उनकी कथा भी अनन्त है; सब लोग उसे बहुत प्रकार से कहते-सुनते हैं। श्री राचन्द्र जी के सुन्दर चरित करोड़ कल्पों में भी गाये नही जा सकते।
हमारे पिताश्री ने श्रीराम की इस अनन्त कथा में अवगाहन करने का प्रयास किया है। वे अपने प्रयास में कहाँ तक सफल रहे हैं, इसका निर्णय सुधी पाठक ही कर पायेंगे।
पूज्य पिताश्री की यह उत्कट अभिलाषा थी कि उनकी अन्य कृतियों के समान प्रस्तुत कृति भी उनके जीवन काल में ही प्रकाशित हो जाए, पर दैव की गति के आगे किसकी चल पाई है? पिताश्री के असमय ही इस संसार से विदा हो जाने के पश्चात यह हमारा दायित्व था कि उनकी उत्कट आकांक्षा को हम मूर्त रूप प्रदान कर सकें। आज ईश्वर की कृपा से यह कृति प्रकाशित हो रही है। आज के घोर स्वार्थी युग में राम का इधर से और भरत का उधर से राज्य ठुकराने का प्रयास निश्चय ही उनके महान् त्याग का परिचायक है। इसी उद्देश्य को जनमानस में प्रचारित करना कवि का मन्तव्य रहा है। आशा है, स्वार्थी समाज इस कृति को पढ़कर स्वार्थ भावना को त्याग सकेगा, इसी पावन उद्देश्य से यह कृति सुधी पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है।
विनीत
(श्रीमती) कमला देवी शर्मा
पत्नी श्री नारायण स्वरूप शर्मा