मौत का पैगाम
भूतपूर्व स्वतंत्रता सेनानी, पंडित शिव नारायण शर्मा (1890-1976) द्वारा रचित कविताओं का संकलन।
मौत का पैगाम
मानव का जब जन्म मिला है, मानव से कर्म करो।
अच्छा अवसर हाथ लगा है, वृथा न इस को नष्ट करो।।
जीवन का क्षण क्षण अमूल्य है, इसे न यों बेकाम रे।
क्या जाने किस समय मौत का, आ जाये पैगाम रे।।
बुरे काम का बुरा मिला फल, पशुओं की बोली बोला।
जनम जनम के किये शुभ करम, मानव का पाया चौला।।
तजकर हिंसा द्वेष भाव को, हिल मिल कर ले नाम रे।
क्या जाने किस समय मौत का, आ जावे पैगाम रे।।
घूम घूम कर हमने देखी, रत्ती रत्ती वस्ती है।
दूकानों पर बाजारों में, धोखेबाजी सस्ती है।।
नगरों से तो लाख भले हैं, वाराने वे गाम रे।
क्या जाने किस समय मौत का, आ जावे पैगाम रे।।
आपस में सज्जनता बरतौ, दुरजन जैसा भाव न हो।
भले बनो नेकी कर कर के, बदकारों में नाम न हो।।
चंचल घोड़े पर सवार हो, खींचे रहो लगाम रे।
क्या जाने किस समय मौत का, आ जवे पैगाम रे।।
नहीं प्रेम से रहना सीखा, आपहिं आप लगे।
सोया सारा विश्व जग गया, तुम सोयो अब तक न जगे।।
दे दो जीवन जन सेवा में, बिक जाओ बेदाम रे।
ना जाने किस समय मौत का, आ जावे पैगाम रे।।