बलवेदी
भूतपूर्व स्वतंत्रता सेनानी, पंडित शिव नारायण शर्मा (1890-1976) द्वारा रचित कविताओं का संकलन।
बलवेदी
स्वतंत्रता का पुराय विषय है, राष्ट्रपिता का यह वरदान।
बलिवेदी का विजय पर्व है, राष्ट्र नायकों का बलिदान।।
रुको न सोचो यों बढ़ने की, यह वेदी ध्वज बंदन की।
नहीं नृत्यशाला नर्तन की, नहीं रंगशाला रंग की।।
कितने मुख की मुस्कानों को, छीन बनी है यह वेदी।
कितने वीणा के तारों को, तोड़ बनी है यह वेदी।।
कितने सुख के स्वप्नों का कर, अंत बनी है यह वेदी।
कितने सुमनों को कुम्हला कर, भरे बनी है यह वेदी।।
कितनी मा के लाल माल कर, लाल चढ़े वह वेदी पर।
कितनी सतियों के सुहाग बन, हार चढ़े इस वेदी पर।।
बाल, लाल, सूफी, बिस्मिल की, भगत सिंह की यह वेदी।
दास, कन्हाई, चन्द्र सेन की, घोष बोस की यह वेदी।।
वेदी पर चढ़ने का तुमको, कहो मिला है क्या अधिकार।
सेवा दूत लेकर के तुमने, कीया कितना है उपहार।।
बलि दे दे कर विजयी होना, हमे मिली यह दिक्षा है।
मार मारना जग ने सीखा, हमने सीखा मरना है।।
बलि वेदी पर बलि बलि जाओ, राष्ट्रपिता की यह पूँजी।
इस देवी को शीष नवाओ, स्वतंत्रता की यह कुँजी।।
बापू ऋण से उरिण नहीं तो, कुछ तो उनका कहा करो।
बापू के अनुयायी तो हो, आज प्रतिज्ञा यही करो।।
धन्य दिवस है, पुराय परब है, सुप्रभात की बेला है।
स्वच्छ गगन है, सुखद पवन है, स्वेत स्वेत का मेला है।।
जाने वालों, बढ़ो न आगे, यह वेदी ध्वज बंदन की।
बलिदानों की, अरमानों की, अरामानों के मर्दन की।।
स्वप्न सुखों का, सुमन खिलों का, अंत छिपा इस वेदी में।
मा ममता की, प्रिय प्रियता की, ज्योति जगी इस वेदी में।।
बाल, लाल की, भगत सिंह की, बिस्मिल सूफी की वेदी।
घोष बोस की चन्द्र सेन की, दास कन्हाई की वेदी।।
यों वेदी पर चढ़ जाने का, क्या तुमने अधिकार लिया।
सेवा का व्रत, लेकर कितना, है तुमने उपकार किया।।
बलि दे दे के, विजयी होना, यही गुरू का कहना है।
मार मारना, जग ने सीखा, हमने सीखा मरना है।।
राष्ट्रपिता के, अनुयायी हो, कुछ तो उनका कहा करो।
सेवा करके, जनमन हरके, बेदी आगे बढ़ा करो।।