समर्पण
पं0 जवाहरलाल नेहरू
भूतपूर्व स्वतंत्रता सेनानी, पंडित शिव नारायण शर्मा (1890-1976) द्वारा रचित कविताओं का संकलन।
समर्पण
पं0 जवाहरलाल नेहरू
आस लगाई थी वर्षों से, पहरी बन तेरा रहता।
दर्शन करके दिव्य मूर्ति के, तृप्त नयन अपने करता।।
सुन-सुन कर अमृत वचनों को, मन प्रसन्न करता रहता।
छिप-छिपकर चरणामृत लेता, जन्म सफल अपना करता।।
भारत माँ के लाल लाडले, तुमको भारत प्यारा था।
इंद्रलोक के नन्दन वन को, तुमने इसपर वारा था ।।
पास न फटके कभी स्वार्थ के, परमारथ की चाह न थी।
छोड़ चुके थे सभी सुखों को, भरी दुखों में आह न थी।।
अमरपुरी को भरत भूमि से, अधिक न तुमने मान दिया।
सुरशासन को नरशासन से, बढ़कर फिर क्यों जान लिया।।
हम अपात्र हैं इसी हेतु क्या, हमसे नाता तोड़ दिया।
प्रिय बच्चों के चाचा नेहरू, उनसे मुख क्यों मोड़ लिया।।
मान नहीं सकते करते हो, छोड़ सभी को तुम आराम।
क्योंकि कहा हमसे करते थे, तुम ही तो आराम हराम।।
निशि दिन रहती लगन लगी यह, सर्वोत्तम हो अपना देश।
प्राण इसी में किये निछावर, यत्न न कोई छोड़ा शेष।।
बिगुल बजाते ही बापू के, छोड़ दिया आनन्द भवन।
बलि दे देने को सब घर ही, निकल पड़ा सानंद मगन।।
वस्त्र विदेशी बायकाट में, बन्दी बनते घड़ा-घड़ी।
वृद्धा माता पत्नी पुत्री, धरना देती खड़ी-खड़ी।।
बंद लगाया संगम पर था, तीर त्रिवेणी कुंभ बड़ा।
मालवीय के सत्याग्रह में, बहती गंगा कूद पड़ा।।
नमक-अवज्ञा आन्दोलन था, बन्दूकें थी तनी हुयी।
मात-पिता थे दर्शक जन में, आखें सबकी लगी हुई।।
दिव्य दिवाकर दुखी देश का, मातृभूमि पर बलि जाता।
प्रबल प्रचारक विश्व शांति का, भावी भारत निर्माता।।
मानस मन में बसा हुआ था, मानस ही लेकर छोड़ा।
देख-देख के ताल तलैया, इस मराल ने मुख मोड़ा।।
लगी लालसा थी वर्षों से, पड़ पैरों पर शीश धरूँ।
प्रेम पगे ये पत्र-पुष्प ले, सादर सम्मुख भेंट करूँ।।
देकर जिसको कर कमलों में, हाथ जोड़ दर्शन करता।
आज उसी की श्रीचरणों में, ऑख मीच अर्पण करता।।