ताशकंद- संधि
भूतपूर्व स्वतंत्रता सेनानी, पंडित शिव नारायण शर्मा (1890-1976) द्वारा रचित कविताओं का संकलन।
ताशकंद- संधि
यह दिखा चुके हैं दुनिया को, हम नहीं किसी से लड़ते हैं।
फिर भी होता है जब हमला, हम रक्षा अपनी करते हैं।
वे तरह तरह के अस्त्र शस्त्र, भारी से भारी टैंक नये।
आनन फानन में हुए चूर, अपना सा मुँह ले लौट गये।।
रग-रग में रक्त पूर्वजों का, दिखलाया इन बलिदानों ने।
दे दे कर प्राण त्राण पाना, सिखलाया वीर जवानों ने।।
भारत में कोई घुस आये, भारत सुत कैसे सह सकते।
प्यारी है मातृ-भूमि जिनको, प्राणों की परवां कब करते।।
हम सदा चाहते शांति रहे, देखें न किसी को हम रोता।
है एक नमूना इसका ही, वह ताशकंश का समझौता।।
क्या इससे हमको खुशी हुई, हँसता दिल धाड़ धाड़ रोया।
पर अपनी नीति निभानी थी, जिसमें अनमोल लाल सोया।।
आँखो के मोती आँखों में, भीतर ही भीतर झलक रहे।
पर ऐसे कठिन समय में भी, हम कही बात पर अटल रहे।।
जो हमसे बनती करते हैं, कोई माने य ना माने।
यदि शांति भंग ही होती है, तो वह जाने दुनिया जाने।।